सोमवार, 10 नवंबर 2008

सच ढूँढता रहा.....

सच ढूंढ्ता रहा शहादत देखिये।
झूठ की हो भी गई ज़मानत देखिये।

अब मौत के आसार हैं ज़्यादा क्योंकि
कड़ी कर दी गई है हिफ़ाज़त देखिए।

भ्रष्टाचार का जंगल तैयार क्यों न हो,
वृक्षारोपण कर रही है सिसायत देखिये।

घरों को बौना रखने के आदेश जो दे गये है‍,
गगनचुम्बी उनकी आप ईमारत देखिये।

विज्ञापनों के खूंटे में टंगा अखबार,
क्या लिखेगा सच की इबारत देखिये।

5 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

अब मौत के आसार हैं ज़्यादा क्योंकि
कड़ी कर दी गई है हिफ़ाज़त देखिए।


--क्या बात है!! बहुत उम्दा!!

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

सशक्त भावपक्ष। शिल्प को थोड़ा और कस लें तो सोने में सुहागा हो जाय। बधाई।

Prakash Badal ने कहा…

आदरणीय समीर लाल भाई,

आपके स्नेह और प्रोत्साहन के लिये शुक्रिया, स्नेह बनाए रखें

Prakash Badal ने कहा…

आदरणीय डाँ0 साहब,

प्रोत्साहन के लिये धन्यवाद आपके सुझावों पर गंभीरता से विचार करूंगा । भविष्य में भी आपकी टिप्पणी की प्रतीक्षा रहेगी।

Anuja ने कहा…

This is wonderful at all.

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