स्कूल डायरी से एक और ग़ज़ल आपकी नज़र कर रहा हूँ:
कई रोज़ हो बेशक ठहरे आवाज़ों के बीच।
क्या माने रखते हैं बहरे आवाज़ों के बीच॥
चुपके से वो सन्नाटों में ज़हर घोल कर चले गये,
आप दे रहे हैं पहरे आवाज़ों के बीच।
अपनी शरारतों पर हम सूरज को कोस रहे,
बेमौसम क्यों जलीं दोपहरें आवाज़ों के बीच।
बारूद और बर्बादी से आगे ही हैं फैल रहे,
नफरत के जो भाव हैं गहरे आवाज़ों के बीच।
जो कटता है कट जाने दे जो घटता है घट जाने दे,
जीना है तो कुछ मत कह रे आवाज़ो के बीच।
कई रोज़ हो बेशक ठहरे आवाज़ों के बीच।
क्या माने रखते हैं बहरे आवाज़ों के बीच॥
चुपके से वो सन्नाटों में ज़हर घोल कर चले गये,
आप दे रहे हैं पहरे आवाज़ों के बीच।
अपनी शरारतों पर हम सूरज को कोस रहे,
बेमौसम क्यों जलीं दोपहरें आवाज़ों के बीच।
बारूद और बर्बादी से आगे ही हैं फैल रहे,
नफरत के जो भाव हैं गहरे आवाज़ों के बीच।
जो कटता है कट जाने दे जो घटता है घट जाने दे,
जीना है तो कुछ मत कह रे आवाज़ो के बीच।
31 टिप्पणियां:
हर शेर ही इतना खूबसूरत है कि,समझ नहीं आया किसे सर्वश्रेष्ठ कह प्रशंशा करूँ और किसे छोड़ दूँ....
पूरी ग़ज़ल ही लाजवाब है.....वाह !!!
बेहतरीन जनाब
AAPKE KAHAN KA TO MAIN KAYAL HUN...KITNI GAHARI BAAT KAR DETE HO AAP AUR WO BHI KITNI AASAANI SE ...
चुपके से वो सन्नाटों में ज़हर घोल कर चले गये,
आप दे रहे हैं पहरे आवाज़ों के बीच।
ISKA UDAHARAN YE KHUD ME BAYAN KARTA HUA YE SHE'R AAPNE AAP ME MUKAMMAL HAI...
BAHOT BAHOT BADHAEE SAHIB AAPKO..
ARSH
जो कटता है कट जाने दे जो घटता है घट जाने दे,
जीना है तो कुछ मत कह रे आवाज़ो के बीच।
wah prakash ji, kamaal ke sher hain ,bloggers ki awaazon ke beech. badhaai.
कई रोज़ हो बेशक ठहरे आवाज़ों के बीच।
क्या माने रखते हैं बहरे आवाज़ों के बीच॥
लाजवाब...वाह...लेकिन प्रकाश जी कहीं कहीं रदीफ़ शेर में भरा हुआ सा लगता है और सही नहीं बैठा लगता...मैं कोई ज्ञानी तो नहीं इसलिए मेरी बात का बुरा मत मानियेगा...
नीरज
बहुत बढ़िया कही आपने गजल ..बहुत सुन्दर
जो कटता है कट जाने दे जो घटता है घट जाने दे,
जीना है तो कुछ मत कह रे आवाज़ो के बीच।
पूरी ग़ज़ल ही लाजवाब है.
चुपके से वो सन्नाटों में ज़हर घोल कर चले गये,
आप दे रहे हैं पहरे आवाज़ों के बीच।
बहूत बेहतरीन ग़ज़ल प्रकाश जी .........
आपकी ग़ज़ल अक्सर कुछ कहती हुई लगती है, आपका अंदाज़ इतना बागी है की दिल झूम उठता है आपकी ग़ज़लों में जिंड्ड़िली, गरूर सॉफ झलकता है और ये मुझे तो बहोत खूब लगता है
bahut hi behtareen likha hai ...khaaskar
चुपके से वो सन्नाटों में ज़हर घोल कर चले गये,
आप दे रहे हैं पहरे आवाज़ों के बीच।
अपनी शरारतों पर हम सूरज को कोस रहे,
बेमौसम क्यों जलीं दोपहरें आवाज़ों के बीच।
subhan allah...kya khoob kaha hai aapne...
चुपके से वो सन्नाटों में ज़हर घोल कर चले गये,
आप दे रहे हैं पहरे आवाज़ों के बीच।
wah!! Meri favourite line...
अपनी शरारतों पर हम सूरज को कोस रहे,
बेमौसम क्यों जलीं दोपहरें आवाज़ों के बीच।
'GREEN HOUSE' effect ki acchi tasveer pesh ki hai...
Vaise bhi iska sabse zayada asar pahad pe ho raha hai...
बहुत उम्दा शेर है। पूरी ग़ज़ल ही अच्छी है। कहने को कुछ दमदार हो तो एक दिन रदीफ, काफिए, मीटर भी अपने आप पीछे-पीछे चले आते हैं।
आपकी नज़र में होगा तिनका वो,
चिड़िया चोंच में घर लिए घूमती है।
प्रकाश जी ,पता नहीं कौन सा मीटर है जिसमे आप की ग़ज़ल नहीं है ..?मुझे तो ऐसा नहीं लगा .मैंने तीन चार गज़लें पढ़ी और मुझे बहुत ही बढ़िया लगी .बधाई
विवशताओं ने पागल कर दिया होगा,
ख़्याल बचपने से कभी चँबल नहीं होते।
वाह क्या बात है .
स्कूल डायरी के पन्ने तो बहुत कुछ कह रहे हैं प्रकाश जी और भी खोलिए ना।
डायरी के ये पुराने पन्ने तो गज़ब ढ़ा रहे हैं प्रकाश जी...और मन मेरा कह रहा है कि जब वहाँ आपसे मिलने आऊँ{जब भी आ पाऊं~} तो चुरा लाऊं ये डायरी आपकी और एक नया ब्लौग चलाऊ आपकी तरफ से.....
गज़ब के मिस्रे हमेशा की तरह चाहे वो "आप दे रहे हैं पहरे आवाज़ों के बीच" हो या फिर ये "बेमौसम क्यों जलीं दोपहरें आवाज़ों के बीच" वाला।
कैसे बुनते हो आप इन शब्दों को ऐसे तेवर लिये?????????
आपके मन की आवाज़ेँ
बचपन मेँ भी अच्छी थी
मन करेँ सुनते रहेँ
ना आयेँ हम आवाज़ोँ के बीच
आपकी गजल अच्छी लगी, क्यों लगी ? यह मत पूछीये कारण आपको पता है ।
कई रोज़ हो बेशक ठहरे आवाज़ों के बीच।
क्या माने रखते हैं बहरे आवाज़ों के बीच॥
चुपके से वो सन्नाटों में ज़हर घोल कर चले गये,
आप दे रहे हैं पहरे आवाज़ों के बीच।...
Prakash ji,
Jab gazal ke damdaron ne itani tarif kar di hai to kuch kahne ke liye bacha hai kya...? Goutam ji ,Gulshan Grover ji .Darsan sah, Dr Anurag v Digamber ji ki tippani hi meri maan len...!!
bhaiya bahut hi ghahri abhivyakti...
"जो कटता है कट जाने दे जो घटता है घट जाने दे,
जीना है तो कुछ मत कह रे आवाज़ो के बीच।"
बारूद और बर्बादी से आगे ही हैं फैल रहे,
नफरत के जो भाव हैं गहरे आवाज़ों के बीच।
भाई आप ने बहुत ही संदर गजल लिखी, गजल के सभी शॆर एक से बढ कर एक
धन्यवाद
स्कूल के समय से कयामत ढा रहे हो, प्रसंशनीय।
कई रोज़ हो बेशक ठहरे आवाज़ों के बीच।
क्या माने रखते हैं बहरे आवाज़ों के बीच॥
बह क्या बात है............................... पर सनद रहे की जो गरजते हैं वो बरसते नहीं, और कई बार ये बहरे भी वह कुछ कर जाते हैं जो ज्यादा चहकने वाले सोच भी नहीं सकते.
गज़ल के सारे शेर कबीले तारीफ हैं.
बधाई.
गज़ल के सारे शेर कबीले तारीफ हैं.पूरी ग़ज़ल ही लाजवाब है.....वाह !!!
आवाज़ों के बीच....
बहुत ही सुंदर गज़ल है पर आवाज़ों के बीच किसी शख्स की मौजूदगी गज़ल को किस भाव मे ला खड़ा करती है ज़रा इसे सोचिएगा....
अपनी शरारतों पर हम सूरज को कोस रहे,
बेमौसम क्यों जलीं दोपहरें आवाज़ों के बीच।
बादल जी ,
आपके ये तेवर ,,,,,माशाल्लाह ,,,,,
दर्पण जी ,,,,,इनकी ग़ज़लों में ग्रीन हाउस वाली चिंता सदा ही देखि है,,,,
और इंसान है के बस कुदरत की तरफ से लापरवाह हो कर अपनी ही मस्ती में जी रहा है,,,,,
बादल जी की ग़ज़लों से हमें सबक लेना चाहिए,,,,,
hi, nice blog....beautiful gazal..
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heard that it is much more superior than the Google's indic transliteration...!?
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Jai....Ho....
MERE 'WAAH' KAHNE SE AAPKO SHIKAAYAT RAHTEE HAI...PAR 'WAAH' HI NIKALE TO MAIN KYAA KAROON!
--
WAAH
BAHUT KHOOB!
--
amit k sagar
good ,keep it up.
बेहतरीन ग़ज़ल...मीटर क्या जनाब यह तो यार्ड में है.
Bhai Prakash ji
Aapki teenon ghazalen padin. Bahar ke atirikt sab kuchh itna sunder ki barbas wah wah nikal gai shabdon ka chayan vaakya vinyas bhavon ki abhivyakti sunder hote huye bhi kuchh kami si lagati hai kash bahar ki kami bhi poori ho jaati to kya kahane.hardik badhai aur shubhkamnayen.
Bachpan ki yaden yun nahin bhulani chahie ki yad karne ke liye diary kholni pde.Ghazl bahut kamal ki hai.
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