शनिवार, 18 सितंबर 2010

हिमाचल प्रदेश से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका 'असिक्नी' आपकी नज़र

तकरीबन तीन साल की लम्बी प्रतीक्षा के बाद असिक्नी का दूसरा अंक प्रकाशित हो गया है. *असिक्नी * साहित्य एवम विचार की पत्रिका* है जो कि सुदूर हिमालय के सीमांत अहिन्दी प्रदेशों में हिन्दी भाषा तथा साहित्य को लोकप्रिय बनाने तथा इस क्षेत्र की आवाज़ को, यहाँ के सपनों और *संकटों* को शेष दुनिया तक पहुँचाने के उद्देश्य से रिंचेन ज़ङ्पो साहित्यिक -साँस्कृतिक सभा केलंग अनियतकलीन प्रकाशित करवाती है. सभा के संस्थापक अध्यक्ष श्री त्सेरिंग दोर्जे हैं तथा पत्रिका का सम्पादन कुल्लू के युवा आलोचक निरंजन देव शर्मा कर रहें हैं।



170 पृष्ठ की पत्रिका का गैटअप सुन्दर है, छपाई भी अच्छी है। मुख पृष्ठ पर तिब्बती थंका शैली में बनी बौद्ध देवी तारा की पेंटिंग है. भीतर के मुख्य आकर्षण हैं :
स्पिति के प्रथम आधुनिक हिन्दी कवि मोहन सिंह की कविता हिमाचल में समकालीन साहित्यिक परिदृष्य पर कृष्ण चन्द्र महादेविया की रपट। परमानन्द श्रीवास्तव द्वारा स्नोवा बार्नो की रचनाधर्मिता को पकड़ने सार्थक प्रयास। पश्चिमी भारत की सहरिया जनजाति पर रमेश चन्द्र मीणा संस्मरण। विजेन्द्र की किताब आधी रात के रंग पर बलदेव कृष्ण घरसंगी और अजेय की महत्वपूर्ण टिप्पणियां। साथ में विजेन्द्र जी के अद्भुत सॉनेट लाहुल के पटन क्षेत्र में बौद्ध समुदाय की विवाह परम्पराओं पर सतीश लोप्पा का विवरणात्मक लेख। लाहुली समाज के विगत तीन शताब्दियों के संघर्ष का दिल्चस्प लेखा जोखा त्सेरिंग दोर्जे की कलम से। इतिहासकार तोब्दन द्वारा परिवर्तन शील पुरातन गणतंत्रात्मक जनपद मलाणा पर क्रिटिकल रपट।नूर ज़हीर, ईशिता आर 'गिरीश ',ज्ञानप्रकाश विवेक , मुरारी शर्मा की  कहानियां. मधुकर भारती,उरसेम लता, त्रिगर्ती, अनूप सेठी , आत्माराम रंजन, सुरेश सेन, मोहन साहिल, सुरेश सेन 'निशांत 'और सरोज परमार सहित गनी, नरेन्द्र, कल्पना ,बी. जोशी इत्यादि की कविताएं. प्रकाश बादल की ग़ज़लें। हाशिए की संस्कृतियों और केन्द्र की सत्ता के द्वन्द्व पर विचरोत्तेजक आलेख, पत्र, व सम्पादकीय। पत्रिका मँगवाने का पता : भारत भारती स्कूल, ढालपुर, कुल्लू, 175101 हि।प्र। दूरभाष : 9816136900 

(रिपोर्ट मैंने अजेय भाई के ब्लॉग से चुराई है, यद्यपि उन्होंने "मेरा ब्लॉग सुरक्षित है" का ताला लगाया था, लेकिन समयाभाव के चलते मैंने सोचा नई रिपोर्ट लिखने से बेहतर है कि ताला ही तोड़ लिया जाए। सारे ताले चोरी के लिए ही तोड़े जाएँ ऐसा ज़रूरी नहीं।अजेय भाई से क्षमा याचना के साथ!)

6 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

प्रकाश जी मेरे कम्प्यूटर पर खुली नही ये पत्रिका फिर भी दोबारा ट्राई करूँगी। अगर इसके विषय मे कुछ और जानकारी दें तो अच्छा लगेगा। कहाँ से छपतीहै सम्पादक का नाम सदस्यता राशी आदि। धन्यवाद। हाँ मुझे हिमाचल से छपने वाली कुछ पत्रिकाओं के नाम पते बता सकते हैं? मेरा ई मेल आई डी ये है
nirmla.kapila@gmail.com

अरुण डोगरा रीतू ने कहा…

भाई क्‍लाउड जय माता दी
आप वे हैं जो भूतो न भविष्‍यति ........

वास्‍तव में अआप आप ही हैं

आप ने जो असिक्‍नी पत्रिका को इंटरनेट पर सबके लिए उपलबध करवा दिया है उसके लिए आपका आभार बिलासपुर के सभी लेखकों की ओर से

आप मं जो क्रियेटिवनैस है वह किसी और में नहीं है
यह हम भी जनते हैं और सारी दुनिया को भी पता है लगे रहो मिंया इसी तरह से लगे रहो


अरुण डोगरा रीतू
बिलासपुर

SAMSKRITI SAROKAAR ने कहा…

इतनी शानदार पत्रिका को नेट के माध्यम से आपको बधाई। इतनी सशक्त पत्रिका के प्रकाशन के लिए सभी सहयोगी बधाई के पात्र है। फिलहाल श्री ज्ञान प्रकाश विवेक जी कहानी के दूसरे पृष्ठ से पन्ने नहीं खुले।

सरसरी नज़र से जितना पढा़, उसमें अनूप सेठी जी की एलबम और हमारे शहर की स्त्रियां कविताएं अच्छी लगीं और उनकी कविताओं पर डॉ. राधा वर्मा का विस्तृत आलेख प्रशंसनीय है। युवा कवि व पत्रकार मोहन साहिल की बस्ता कविता उल्लेखनीय है।

हमारे कोलकाता के निशांत द्वारा रचित लंबी कविता कस्बे में प्रेम भी दिल को छू गई।

-नीलम शर्मा अंशु

Prakash Badal ने कहा…

नीलम जी, शुक्रिया आपको पत्रिका अच्छी लगी, आपको ज्ञान प्रकाश विवेक जी की कहानी पढ़ने के लिए परेशानी हुई इसके लिए खेद है, आपसे आग्रह है कि पहले पत्रिका को पूरा खुलने दें, पत्रिका के पन्ने खुलने में आपके इंटरनैट कनैक्शन की स्पीड पर भी निर्भर करता है, लेकिन अगर आप थोड़ी प्रतीक्षा के बाद देखेंगी तो आप पूरी पत्रिका देख सकती हैं। आप पूरी पत्रिका को डाऊनलोड भी कर सकती हैं,ऊपर बाईं और ऑप्शन में जाकर 'डॉऊनलोड ऑफलाईन वर्शन' पर क्लिक करें, थोड़ॆ ही समय में असिक्नी का पूरा अँक आपके क्म्प्यूटर में आ जाएगा फिर आप उसे बेरोकटोक देख सकेंगी।
प्रोत्साहन के लिए आभार! सभी को इस पत्रिका के बारे में बताएँगी तो ताकत मिलेगी।

नीलम शर्मा 'अंशु' ने कहा…

बहुत-बहुत धन्यवाद। फिर से कोशिश करूंगी।

रवि रतलामी ने कहा…

पत्रिका कमाल की निकाली है.
इसकी सामग्री यूनिकोड हिंदी में भी इंटरनेट पर डालें ताकि इसका प्रयोग सर्च इत्यादि के जरिए भी किया जा सके

रफ़्तार Related Posts with Thumbnails
Bookmark and Share