असिक्नी पत्रिका में प्रकाशित गज़ल भाई मनु, अरुण डोगरा और अर्श भाई के लिए थी, मित्र का कोई और ही अर्थ न निकाल लिया जाए इस लिए सूरत साफ कर दी जाए तो अच्छा।
ये कैसी घृणा की नदी तेरे मेरे बीच,
है एक पुल की कमी तेरे मेरे बीच।
तूने ही पटरियाँ बराबर न की,
थी प्यार की तो रेल चली तेरे मेरे बीच।
न मुझे सोने दिया, खुद भी जग रहा,
कुछ यूँ रातें कटीं तेरे मेरे बीच,
सूरज को कब रोक पाईं सरहदें,
है बराबर सी धूप बँटी तेरे मेरे बीच
ये कैसी घृणा की नदी तेरे मेरे बीच,
है एक पुल की कमी तेरे मेरे बीच।
तूने ही पटरियाँ बराबर न की,
थी प्यार की तो रेल चली तेरे मेरे बीच।
न मुझे सोने दिया, खुद भी जग रहा,
कुछ यूँ रातें कटीं तेरे मेरे बीच,
सूरज को कब रोक पाईं सरहदें,
है बराबर सी धूप बँटी तेरे मेरे बीच
19 टिप्पणियां:
बहुत खूब !
इस रचना ने लगभग नौ महीनों का समय ले लिया। जल्दी से इसे पूर्णता प्रदान करें। हमें इंतज़ार है।
वैसे फेसबुक पर आपको दोस्तों की सूची लगभग 1600 हैं, कैसे याद रखते हैं इतनों को। आपकी हार्ड डिस्क का जवाब नहीं।
- नीलम शर्मा 'अंशु'
देर आयद दुरुस्त आयद ... वेसे काफी देर हो गयी इस बार ..... बे- बहर में आपका कोई सानी नहीं ... इसको जल्द से मुकम्मल का जामा पहना दें ... खुबसूरत रचना के लिए दिल से बधाई....
अर्श
डिम्पल जी का आभार, नीलम जी से तो फोन पर लम्बी बात हुई, और अर्श भाई से जबरदस्ती टिप्पणी लिखवाई
बहुत ही सुंदर कविता जी, धन्यवाद
शुक्रिया राज भाई आप हर बार की तरह इस बार भी आए।
अरे वाह याद आ गई इस ब्लॉग की। अहोभाग्य हम सब लोगो का कि कोई खोया ब्लॉगर वापस आ गया। गजल अच्छी बन पड़ी है। पर इतने दिन क्या किया इसका लेखा जोखा भी लिखें।
रोहित भाई शुक्रिया आपने याद रखा ये ही बहुत है
बिरादर इतने दिनों का लेखा जोख तो दें। कहां रहें क्या करते रहे......>
वाह...बहुत खूब...बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल...
कितना सही कहा है आपने....
लिखते रहिये...पोस्टों की आवृति बढाइये...शुभकामनाएं..
छप चुकी है...फिर भी अभी तक काम चल रहा है जी...?
ये तो वही ग़ज़ल है जिओ दो साल रात पहले ११ बजे आपने फोन पे सुनाई थी...
इतने अरसे बाद आप ये हमें समर्पित कर रहे हैं...
मनु भाई समर्पित इसलिए कि मुझे लिखने पर मज़बूर कर दिया आपने
bahut dino baad aapke blog par aana hua...
bahut khoob likha hai... is blogging ne hum sbko is tarah jod diya h jaise koi rishta hai tere mere bich :)
बहुत खूब...
..अच्छा लगा आपको पढ़कर।
आज आपका जन्म दिन है..ढेर सारी बधाई।
बहुत ही सुंदर कविता| धन्यवाद|
बेहतर कोशिश
nice words you have chosen
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
वाह बदल जी ...अति सुंदर गजल ....ये केसी घृणा की नदी है तेरे मेरे बीच...यूँ तो आप हिमाचल के हर रचनाकार के ब्लॉग पर नजर आते हैं लेकिन आपने जो हिमाचली रचनाकार को नेट से जोड़ने का काम किया है इसके लिए हिमाचली साहित्य जगत आपका आभारी रहेगा | हमें आप पर गर्व है |
bahut sundar prakash bhai;.; badhiya gazal... diwali kee hardik shubhkaamna !
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