शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2008

प्रकाश बादल की दो नई गज़लें


ग़ज़ल
ये बजट आपका हमको तो गवारा नहीं।
चिड़ियों को घोंसले जिसमें पशुओं को चारा नहीं।

यूँ ही माथा गर्म नहीं, है ये दिमागी बुखार,
पिघलते ग्लेशियरों का समझते क्यों इशारा नहीं।

मंगल और वीर को वो शाकाहारी वेष्णो,
जिस्म नोच कर खाते हैं पर वक़्त सारा नहीं।

औहदे और दाम तो हमको भी थे मिल रहे,
संस्कारों का लिबास मगर हमीं ने ही उतरा नहीं।

महलों से निकलकर झुग्गियों में फ़ैल गई,
गमलों की ज़िन्दगी में खुशबु का गुज़ारा नहीं।

जाने अब तक कितने तूफान पी गया है,
इस समंदर का पानी यूँ ही तो खारा नहीं,

दो रोटियों का वो चुटकी में हल करता है सवाल,
ये पत्थर का खुदा तो मगर हमारा नहीं।


ग़ज़ल
इरादे जिस दिन से उड़ान पर हैं।
हजारों तीर देखिये कमान पर हैं।

लोग दे रहे हैं कानों में उँगलियाँ,
ये कैसे शब्द आपकी जुबां पर है।

मेरा सीना अब करेगा खंजरों से बगावत,
कुछ भरोसा सा इसके बयान पर है।

मजदूरों के तालू पर कल फिर दनदनाएगा,
सूरज जो आज शाम की ढलान पर है।

झुग्गियों की बेबसी तक भी क्या पहुँचेगी,
ये बहस जो गीता और कुरान पर है।

मजदूर,मवेशी, मछुआरे फिर मरे जाएंगे,
सावन देखिये आगया मचान पर है,

मक्कारों और चापलूसों से दो चार कैसे होगा,
तेरे पैर तो अभी से थकान पर है ।



10 टिप्‍पणियां:

अनूप शुक्ल ने कहा…

स्वागत है चिट्ठाजगत में।

रंजन राजन ने कहा…

अच्छा लिखा है आपने। यूं ही लिखते रहें, सदियों तक...
इस दीपावली के मौके पर मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें। मेरी दुआ है कि अगली दीपावली तक आपकी गजल की किताब मेरे हाथों में हो।

अनुपम अग्रवाल ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
अनुपम अग्रवाल ने कहा…

sir udte baadal ko salaam pahunche
महलों से निकलकर झुग्गियों में फ़ैल गई,
खुशबु ने गमलों में शब् गुजारा तो नहीं
मैंने भी तूफ़ान झेले ,और समेटे हैं
कहीं तेरा मेरी ओर इशारा तो नहीं
हर सवाल हल करता है वो चुटकी में
मगर ये बादल का खुदा हमारा तो नहीं

अनुपम अग्रवाल ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Prakash Badal ने कहा…

आदरणीय अग्रवाल जी,

सादर प्रणाम!

मेरी गज़ल पर आपकी टेप्पणी देखकर खुशी हुई। मगर आपने उसमेँ यह नहीं सुझाया कि वो पंक्तियां आपने सुधारनी चाही है या फिर यूं ही मेरे प्रोत्साहन में सब लिखा है, मगर उसमें आपने कउछ लिखा है, वो नि:संदेह काबिले-तारीफ है।
--
प्रकाश बादल

chandrabhan bhardwaj ने कहा…

Bhai Prakash Badal ji aapka yah kahana ki meeter men rahana arth ki hatya karane jaisas hai sarasar galat hai. Meeter men likhana mehnat mangata hai. Ek baar koshish to kariye. Meeter men likha arth ki hatya nahin karata balki murde men jaan dalta hai.Agar aapki rachana meeter men nahin hai to use app gazal kyon kahato ho koi doosra naam de deejiye. Gazal kahana hai to gazal ka anushasan nibhana padega. Tabhi baat banegi. Jhoothi wahwahi lootane men maza nahi hai.Aasha hai aap ise swastha mansikta se lenge.
Chandrabhan Bhardwaj

Prakash Badal ने कहा…

चन्द्र्भान जी,
स्नेह के लिये शुक्रिया, अच्छा लिखने का प्रयास करूंगा।

Anuja ने कहा…

Both of two ghazles are best.

रौशन जसवाल विक्षिप्त ने कहा…

सुन्‍दर

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