इस कदर भी उजाले न हो।
घर आग के निवाले न हो।
प्यासे हलक से गुज़रे न जब तलक,
नदी समन्दर के हवाले न हो।
बोल प्यार के हों ग़ज़ल की राह में,
मस्जिद न हो और शिवाले न हो।
सूरज अबके ऐसी भी धूप न बाँटे,
कि पहाड़ पर बर्फ़ के दुशाले न हो।
खुशियों की मकड़ियों का वहाँ गुज़र नहीं,
ग़मों के जिस घर में जाले न हो।
इस हमाम में सब नंगे नज़र आएंगे।
सच की ज़बान पर जो ताले न हो।
घर आग के निवाले न हो।
प्यासे हलक से गुज़रे न जब तलक,
नदी समन्दर के हवाले न हो।
बोल प्यार के हों ग़ज़ल की राह में,
मस्जिद न हो और शिवाले न हो।
सूरज अबके ऐसी भी धूप न बाँटे,
कि पहाड़ पर बर्फ़ के दुशाले न हो।
खुशियों की मकड़ियों का वहाँ गुज़र नहीं,
ग़मों के जिस घर में जाले न हो।
इस हमाम में सब नंगे नज़र आएंगे।
सच की ज़बान पर जो ताले न हो।
28 टिप्पणियां:
वाह! मज़ा आ गया भाई. हर शे'र बेहतरीन. हमेशा की तरह!
--
luv u
सूरज अबके ऐसी भी धूप न बाँटे,
कि पहाड़ पर बर्फ़ के दुशाले न हो।
खुशियों की मकड़ियों का वहाँ गुज़र नहीं,
ग़मों के जिस घर में जाले न हो।
ye do sher khas pasand aaye prkash ji......
waah ji waah sahab.. kya baat kah di aapne... bahot khub likha hai aapne.. maza aagya sahab...
apni nai rachna pe aapka dhero swagat hai ....nevta diye jaata hun..
arsh
bahut sunder rachna.
बहुत ही सुन्दर रचना है ।
इस हमाम में सब नंगे नज़र आएंगे।
सच की ज़बान पर जो ताले न हो।
प्रकश जी बहुत ही सुंदर भव लिये है आप की कविता.
धन्य्वाद
प्यासे हलक से गुज़रे न जब तलक,
नदी समन्दर के हवाले न हो।"
मैं तो इन पंक्तियों की टीस में गुम हो गया हूं .
धन्यवाद
सूरज अबके ऐसी भी धूप न बाँटे,
कि पहाड़ पर बर्फ़ के दुशाले न हो।
lajawab gazal badhai
खुशियों की मकड़ियों का वहाँ गुज़र नहीं,
ग़मों के जिस घर में जाले न हो।
भाई प्रकाश जी, बहुत सुन्दर लिखा है .
निजी जीवन से हटकर आप लोग कैसे लिख लेते हैं, मेरे लिए सदा से ही अचरज एवं कौतूहल का विषय रहा है .
धन्यवाद एवं बधाई स्वीकार करें .
'प्यासे हलक़ से…'
'बोल प्यार के हों…'
'सूरज अबके…'
बेहतरीन!,बहुत ख़ूब!
बादल जी,
काफी देर से बैठा हूँ कमेन्ट देने ...पैर वो आपके नदी समंदर के हवाले ना हो ,,,,,,,,,,,
और पहाड़ पर बर्फ के दुशाले ना हो,,,,,,,,,,,,,,,
मुझे किसी और ही ख्याल में ले गए,,,,कितनी चिंता जनक बातें हैं,,,,,,,,जितनी आसानी से आप कह गए,,,,,काश सब उतनी ही आसानी से समझ कर कदम उठाने शुरू करें,,,,,तो इस धरा की सुन्दरता बची रह सके,,,,,,,jeewan bachaa rah sake ,,,,,,
ग़ज़ल से पहले आपकी शानदार फिक्र की तारीफ़ करता हूँ,,,,
सूरज अबके ऐसी भी धूप न बाँटे,
कि पहाड़ पर बर्फ़ के दुशाले न हो।
बहुत ही बेहतरीन .प्रकति का यह रूप जिस तरह से आपने अपने लफ्जों में उतरा दिया वह लाजवाब है सुन्दर
बोल प्यार के हों ग़ज़ल की राह में,
मस्जिद न हो और शिवाले न हो।
सूरज अबके ऐसी भी धूप न बाँटे,
कि पहाड़ पर बर्फ़ के दुशाले न हो
प्रकाश जी
एक और धमाकेदार ग़ज़ल आपकी, हर शेर लाजवाब, खूबसूरत, सांचे में ढाला है.
एक बार फिल से आपके बागी तेवर में लिपटी ग़ज़ल है जो बहुत ही जोरदार है. नाजा आ गया पढ़ कर
प्रकाश भाई नमन है...
इस तेवर पे जान छिड़कते हैं हम "इस हमाम में सब नंगे नज़र आएंगे/सच की ज़बान पर जो ताले न हो" ....
और फिर इस ’नदी समन्दर के हवाले" वाला अंदाज़ तो उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ रे““““‘
सैल्युट करता हूँ भाई आपको
भाई बहुत कमाल की अभिव्यक्ति है
.शेर हों तो फिर ऐसे हों.मीटर बाद में कभी सीख लेना . अभी तो बस इसी तरह अच्छे शेर कहने का अभियान जारी रखो,
कहीं ग्लोबल वार्मिँग की बात कहीं नदी समन्दर और प्यास की बात
इसी लिए तो कहता हूँ
.प्रकाश बादल
की
जय हो
ab sab tareef karein aur main na karoon aisa bhi saudaai nahi hoon janaab, bas likhe jaiye aur kya, padhhane wale kabhi kam na honge...
बोल प्यार के हों ग़ज़ल की राह में,
मस्जिद न हो और शिवाले न हो।
बेहद शानदार शब्द और भाव.....सुंदर अभिव्यक्ति..."
Regards
"बोल प्यार के हों ग़ज़ल की राह में,
मस्जिद न हो और शिवाले न हो।"
aisa waqt aane me shayad ab der lagegi...
bahut hi sundar rachna.
:)
अत्यंत रोचक गंभीर भावो को वहन करती सुन्दर शब्द रचना ... वाह वाह यह ग़ज़ल यदि संगीत बद्ध हो तो सोने पर सुहागा मैंने तो इसको गाकर ही पढा
इस कदर भी उजाले न हो
घर आग के निवाले न हो...
इस हमाम में सब नंगे नज़र आएंगे
सच की ज़बान पर जो ताले न हो...
बहुत खूब प्रकाश भाई...
बेहतरीन रचना...
मोहब्बत ही बस मजहब हो
परवाह नहीं जो मस्जिद न हों , शिवाले न हों
ग़ज़ल आई है एहसास की गहराई से
कौन है जो आपकी मोहब्बत के हवाले न हो .
बहुत बढ़िया प्रकाश भाई .
ऐसे ही अपनी ग़ज़लों से हमें भिगोते रहिये
"इस हमाम में सब नंगे नज़र आएंगे।
सच की ज़बान पर जो ताले न हो।"
दो पंक्तियों में दो निबंध लायक सामग्री दे दी है प्रकाश!!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- बूंद बूंद से घट भरे. आज आपकी एक छोटी सी टिप्पणी, एक छोटा सा प्रोत्साहन, कल हिन्दीजगत को एक बडा सागर बना सकता है. आईये, आज कम से कम दस चिट्ठों पर टिप्पणी देकर उनको प्रोत्साहित करें!!
प्रकाश जी ,
नस्तर को नश्तर कर आये हम ...यहाँ आ कर देखा तो मनु जी आपका ब्लॉग खोले बेजुबां हुए बैठे हैं ...
अब आप इतना भी अच्छा न लिखा करो की तारीफ के लिए शब्द ही न निकलें ...!
yun to हर शेर लाजवाब..!
सूरज अबके ऐसी भी धूप न बाँटे,
कि पहाड़ पर बर्फ़ के दुशाले न हो।
खुशियों की मकड़ियों का वहाँ गुज़र नहीं,
ग़मों के जिस घर में जाले न हो।...
pr ये दो शे'र बहुत पसंद आये खास कर मकड़ियों और जालों
का प्yog nya सा लगा और अच्छा भी ...!!
सूरज अबके ऐसी भी धूप न बाँटे,
कि पहाड़ पर बर्फ़ के दुशाले न हो।
... प्रभावशाली अभिव्यक्ति।
बोल प्यार के हों ग़ज़ल की राह में,
मस्जिद न हो और शिवाले न हो।
बहुत सुंदर!
भाव और शब्द नियोजन.दोनों लाजवाब !!! वाह !!! जितनी तारीफ की जाय बहुत कम है...
हरेक शेर मन को छू गए..
Prakashji,
Hameshaki tarah mai isbaarbhee khamosh lautne waalee thee, lekin tippaneekee himmat kar dee.
Aapko "meter"me likhnaa pasand nahee....phirbhee fikre kisqadar aasaaneese jude hain...!
Mai to meter me isliye nahee likhtee ki mujhe ataahee nahee !
Mujhe aapki kis rachnaape tippanee likhnee chahiye ye sochnekee zaroorat isliye nahee padee, ki harek rachnaa behad sashakt aur gehree hai.....ye kehneki bhee shayad zaroorat nahee...."haathkanganko aarsee" dikhane waalee baat hai...phirbhee keh diya !
Second last share apne ap me hi bahut behtareen hai.
Vese to puri ghazle hi lajwab hai.
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