भोर का वहम पाले उनको ज़माना हुआ।
कब सुनहरी धूप का गुफाओं में जाना हुआ।
रख उम्मीद कोई दिया तो जलेगा कभी,
भूख के साथ पैदा हमेशा ही दाना हुआ।
मर्यादा में था तो सुरों में न ढल सका,
शब्दों को नंगा किया तो ये गाना हुआ।
तरकश उनका तीरों से हो गया ख़ाली मगर,
मेरे हौसले ने अभी भी है सीना ताना हुआ।
हो आपको ही मुबारक ये मख़मली अहसास,
जो चुभता ही नहीं वो भी क्या सिरहाना हुआ।
थोड़ी सी नींद जब चिंताओं से मांगी उधार,
लो सज-धज के कमवख़्त का भी आना हुआ।
जिसमें दिल की धड़कन ही न शामिल हुई,
वो भला क्या हाथों में मेंहदी लगाना हुआ।
कब सुनहरी धूप का गुफाओं में जाना हुआ।
रख उम्मीद कोई दिया तो जलेगा कभी,
भूख के साथ पैदा हमेशा ही दाना हुआ।
मर्यादा में था तो सुरों में न ढल सका,
शब्दों को नंगा किया तो ये गाना हुआ।
तरकश उनका तीरों से हो गया ख़ाली मगर,
मेरे हौसले ने अभी भी है सीना ताना हुआ।
हो आपको ही मुबारक ये मख़मली अहसास,
जो चुभता ही नहीं वो भी क्या सिरहाना हुआ।
थोड़ी सी नींद जब चिंताओं से मांगी उधार,
लो सज-धज के कमवख़्त का भी आना हुआ।
जिसमें दिल की धड़कन ही न शामिल हुई,
वो भला क्या हाथों में मेंहदी लगाना हुआ।
22 टिप्पणियां:
हो आपको ही मुबारक ये मख़मली अहसास,
जो चुभता ही नहीं वो भी क्या सिरहाना हुआ।
थोड़ी सी नींद जब चिंताओं से मांगी उधार,
लो सज-धज के कमवख़्त का भी आना हुआ।
जिसमें दिल की धड़कन ही न शामिल हुई,
वो भला क्या हाथों में मेंहदी लगाना हुआ।
bahut hi lajawab sher rahe badhai,gazal khubsurat
शुक्रिया महक जी,
मुझे बहुत खुशी हुई और लिखने कौंध् जागी है।
bahot hi badhiya ghazal likha hai aapne bahot sundar bhav se bhara hua ... aapko dhero badhai .......
भैयामीटरतो लगाना ही पडेगा, शब्दों का चयन और अच्छा कर लिया जय तो, जावेद साहब कोमात दे देओगे।
अर्ष भाई,
प्रोत्साहन के लिये आपका शुक्रिया। मेरी नई पोस्ट आते ही जिस चुस्ती से आप उस पर टिप्पणी करते हैं, उससे आपकी साहित्य के प्रति रुचि स्पष्ट झलकती है और मेरे प्रति आपका स्नेह स्पष्ट झलकता है। आपका हार्दिक धन्यवाद।
भाई संदीप जी,
मीटर अगर अर्थ को फीका करता है तो मुझे अर्थ के साथ रहना ही अच्छा लगता है लेकिन ऐसा नहीं कि मैं मीटर में नहीं रहना चाहता मगर अर्थ को आगे रखकर। जावेद साहब से मेरी तुलना करके आपने जो सम्मान मुझे दिया है, वो मेरे लिये बेहद प्रोत्साहित करने वाली टिप्पणी है, लेकिन जावेद साहब की सोच मुझ से कई मील ऊंची है उनकी बराबरी की मैं कभी भी नहीं सोच सकता। आपके स्नेह का आभार।
रख उम्मीद कोई दिया तो जलेगा कभी,
भूख के साथ पैदा हमेशा ही दाना हुआ।
हो आपको ही मुबारक ये मख़मली अहसास,
जो चुभता ही नहीं वो भी क्या सिरहाना हुआ।
भाई..बेहतरीन ग़ज़ल और हर शेर लाजवाब...आप को पहली बार पढ़ा और आपकी लेखनी का कायल हो गया...लिखते रहिये..खुदा करे जोरे कलम और जियादा...
नीरज
आदरणीय नीरज जी,
आपका आभार, जो प्रोत्साहन आपने मुझे दिया वो मुझे और अच्छा लिखने को प्रेरित करेगा।
सादर
प्रकाश बादल
prakashbadal.blogspot.com
"मर्यादा में था तो सुरों में न ढल सका,
शब्दों को नंगा किया तो ये गाना हुआ। "
वाह प्रकाश! वाह!
लिखते रहो, शब्द सशक्त होते जायेंगे.
जहां तक हो सकता है मीटर का पालन करो. यदि ऐसा करने से अभिव्यक्ति कुंद होती है तो मीटर छोड स्वतंत्र रचना करो.
सस्नेह -- शास्त्री
Bhai Prakashji, Aapki rachana padi,(maaf karen mera dil ise gazal maananae ko raazi nahain hai).Rachana men shabda vinyas bhawavyakti bhasha saushtava nischit hi achchha hai.men Sandeep Sharma ki baat se 100% sahamat hoon ki gazal bahar men to likhani hi padegi. Pata nahin aapne yah galatfahami kahan se paal li hai ki bahar men rahane se arth ki hatya ho jati hai.meeter men nahi rah kar aap asal men apne gazal lekhan ki hatya kar rahe hain.Aap is par punarvichar karen.
Aapki rachana ke liye badhai.
Chandrabhan Bhardwaj
Bhai Prakash ji, Mujhe krapaya yah batayen ki aapko urdu chhand shastra (Uruz) ki aur baharon ki jaankaari hai ya nahi. Kahin aisa to nahin ki iske abhav men aap baharo se bachane ki koshish kar rahe hon.
Chandrabhan Bhardwaj
हिन्दी ग़ज़ल एक चुनौती सी है. और आप वाकई उम्दा.
जिसमें दिल की धड़कन ही न शामिल हुई,
वो भला क्या हाथों में मेंहदी लगाना हुआ।
बहुत सुंदर लगा यह ..
आदरणीय शास्त्री जी,
आपके प्रोत्साहन का आभार। मेरी कोशिश रहती है की मीटर में गज़ल हो लेकिन जब अर्थ फ़ीका पड़ जाए तो मैं अपनी भावनाओं को खुला छोड़ देता हूं बिल्कुल उसी रूप में जिस रूप में वो दिल को छू जाते हैं। आप की सलाह पर गंभीरता से गौर करूंगा
जिसमें दिल की धड़कन ही न शामिल हुई,
वो भला क्या हाथों में मेंहदी लगाना हुआ।
-यूं तो हर शेर मुक्कमल है और दाद का हकदार!!
शुक्रिया समीर भाई आपका।
सब कह रहे हैं शब्द अच्छे,फ़िर से बरस बादल
भरा है जाम ना छलके वो भी कोई पैमाना हुआ
इतने दिनों बाद आपने हाल हमारा पूछा है।
ये भी कोई अग्रवाल जी आपका आना हुआ।
आपका बहुत बहुत शुक्रिया अग्रवाल जी।
bahut khub likha aapne
Abhi bataata hoon...
Bataane hi laga tha ki Kambakht wo aa gayi jo aksar be-meter aur be- bahar dopahar se pahle subah subah aa jaati hai...
Ab taim mila. Le mere Shayar... Le meri Mehfil...
Sahi mausam me hamara kahin aana jaana nahin...
Baadalon ka bandishon me thikaana nahin...
Jin udaano ko aasmaano ne bigaada hai...
Unki parwaaz ko tum ne pahchaana nahin...
Nahi meter na sahi, gaflat hi sahi...
Paaglon ko tumhaara kuchh odhna bichhana nahin.
Ab ye na kahna ki...
Agar paaglon ya baadlon ke seeng nahin hote toh...
Blog bhi kyon hote hain?
Arey yaar... Ham Pahaadi kitne bhi anaadi kyon na hon...
Laada ya Laadi toh ham bhi le hi aate hain...
Mil jaaye to dil ki mehandi sajaane waale mahboob bhi...
-Sainny Ashesh, Via Laddakh...
Mere pyaare Aawaara Badra...
Oopar meri Bhoomika me kuchh yoon kar lena :
"...be-bahar, dopahar se pahle, sahar sahar aa jaati hai... wo thahar thahar... "
Ab bataao.... hamaara aur tumhaara kya naap legen meter?
Lekin, Yaar... hame maaloom rahe ki jinhen Meter ki samajh hoti hai, wohi meter ke paar ho jaate hain... Hai na Mittara?
Kuchh logon ne oopar tumhen kuchh achhi sachhi baaten kahi hain. Ham unhen samjhen aur nayi udaan par niklen...
Dawa unke liye hoti hai, jinka ilaaj mumkin ho.
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