मंगलवार, 11 जनवरी 2011

रास नहीं आता अतुल महेश्वरी का इस तरह जाना...............

jaata nahin koi
                                              'अमर उजाला 'के प्रबन्ध निदेशक अतुल महेश्वरी के जाने से संपूर्ण भारतीय मीडिया जगत को बहुत बड़ा नुकसान पहुँचा है। हिमाचल प्रदेश के हज़ारों मीडिया कर्मी सहित हिमाचल का सारा मीडिया जगत उनके अकस्मात जाने की खबर से स्तब्ध है। शोक का जो सन्नाटा इस दुखद घटना से हिमाचल के पहाड़ों ने महसूस किया है वो संभवतय: पहली बार है। इस दुःख का एक मात्र कारण ये है कि अतुल महेश्वरी ने हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे पहाड़ी राज्य में उस समय पत्रकारिता का डंका बजाया, जब हिमाचल प्रदेश में एक दो अखबार ही नज़र आते थे । हिमाचल के पहाड़ों का दर्द पहाडों की ऊँची चोटियाँ पार करके राजधानी और सियासतदानों तक कम ही पहुँचता था। मैंने हिमाचल प्रदेश में उस समय पत्रकारिता की थी, जब अखबारों में काम करने के लिए न तो पर्याप्त आय के साधन थे न ही इतना स्थान हिमाचल प्रदेश को मिलता था। कुछ अखबार हिमाचल में आए भी, लेकिन दुर्गम पहाड़ों की पगड़डियों को पार न कर पाए। इसी प्रकार जब हिमाचल जैसे पहाड़ी प्रदेश में अखबार निकालना एक बड़ी चुनौती लग रहा था तो दूसरी ओर हिमाचल संस्करण निकालने की सोच को बहुत कम लोगों ने गंभीरता से लिया। हिमाचल में पैसा और प्रसिद्धि प्राप्ति के लिए कई अख़बारों ने हिमाचल से निकलने की घोषणाएँ की और बहुत से अखबर निकल भी आए लेकिन आर्थिक संकट, खराब संचार व्यवस्था और हिमाचल में पत्रकारिता की संभावनाओं के प्रति सही दृष्टिकोण का अभाव इन अखबारों की कमज़ोरी साबित हुआ। बहुत से समचार पत्र जो बड़ा जोश दिखा कर हिमाचली पहाड़ों को चुटकी में लाँघने और हिमाचल के दुःख दर्द को साझा करने के नारों के साथ आए थे वो कुछ ही कदम चलकर हाँफने लगे। 'अमर उजाला' का हिमाचल में अवतरण ऐसे ही समय में हुआ था।
Page1shradhanjli                                                  अतुल पहाड़ के दर्द को साझा करने की मंशा से हिमाचल में समाचार पत्र लेकर आए थे जो आज हिमाचल में 'अमर उजाला' की प्रसिद्धि से साबित होता है। पत्रकारिता का अनुभव तो उन्हें अच्छा खासा था ही, इसी के चलते हिमाचल प्रदेश में अतुल की रणनीति और दूरदर्शिता ने 'अमर उजाला' की प्रसिद्धि का झंडा गाड़ दिया।  कठिनाईयों से गुज़रने के बाद भी अतुल की टीम ने हिमाचल प्रदेश में सफलता का जो परचम लहराया उसे देखकर हिमाचल का मीडिया जगत सतब्ध रह गया। इसी के फलस्वरूप अतुल का इस कदर अचानक चला जाना हिमाचल के लिए भी उतना ही पीड़ादायक है जितना भारत के अन्य स्थानों के लिए। आज हिमाचल प्रदेश में 'अमर उजाला' सबसे ऊपर है, उसके पीछे अतुल जैसे स्नेही, कर्मठ, निपुण और अनुभवी पत्रकार की दूरदर्शी सोच के सिवा और कुछ भी नहीं। अतुल ने जहाँ 'अमर उजाला' को हिमाचल में लाकर पत्रकारिता के तथाकथित एकाधिकार को समाप्त किया वहीं पत्रकारिता में स्पर्धा को भी बढ़ावा दिया जिसका सीधा लाभ हिमाचल प्रदेश में हो रही रिपोर्टिंग पर पड़ा । सरकारी प्रैस रूमों में बैठे पत्रकार गाँव-गाँव की खाक छानने को मजबूर हो गए। इस स्पर्धा में पत्रकारिता के सही मायने अब समझ में आने लगे जबकि अब तक तो सरकारी प्रैस नोट को ही खबर मान कर अखबार भरे जा रहे थे। बागवानों की समस्याएं हो, कोई जलसा-जुलूस या फिर मूलभूत सुविधाओं के लिए गाँव की दिक्कतें, अतुल ने ऐसे मुद्दों को उठाने के लिए हिमाचल में एक विशेष टीम को भेजा। पहले- पहले तो इस बात का यह कह कर भी विरोध हुआ कि ' अमर उजाला' हिमाचल प्रदेश में उत्तर प्रदेश के लोगों को ही स्थापित करवाना चाहता है, क्योंकि अधिकतर लोग जो 'अमर उजाला' में थे, वो उत्तर प्रदेश के थे या फिर हिमाचल के बाहर के। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, हिमाचल प्रदेश में इस समाचार पत्र ने अपनी पैठ बनाना शुरू कर दी, वैसे-वैसे हिमाचल प्रदेश के बेरोज़गार युवाओं और पत्रकारिता की समझ रखने वाले व्यक्तियों को 'अमर उजाला' ने स्थान देना शुरू कर दिया। आज सैंकड़ों ऐसे पत्रकार हिमाचल प्रदेश में हैं जो हिमाचली मूल के होने के साथ पत्रकारिता में सक्रिय है।
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                                     शिमला ज़िला के जुब्बल जैसे छोटे गाँव से तब मैं पत्रकारिता करता था, उस समय जुब्बल में अखवार 12 बजे से 3 बजे शाम पहुँचती थी। अगर सरकारी बस खराब हो जाए तो अखबारें दूसरे-तीसरे दिन भी पहुँचती थी। जुब्बल तो फिर भी सड़क से जुड़ा हुआ गाँव था, लेकिन ऐसी स्थिति में ज़रा सोचिए जब रिकाँगपीओ, केलँग और लाहुल स्पीति जैसे दुर्गम क्षेत्रों में अखबार भला कहाँ पहुँचती होगी। 'अमर उजाला' ने पहली बार व्यवस्था की कि उनकी अखबार टैक्सी के द्वारा दुर्गम हिमाचली क्षेत्रों में जाएगी और यथासंभव जल्दी से जल्दी पाठकों तक पहुँचेगी। इसका परिणाप साफ-साफ सामने आया जुब्बल में अखबार सुबह 8 बजे पहुँचने लगी। अखबार का सर्कुलेशन तेज़ी से फैला। प्रतिद्वंदी अखबारों को भी टैक्सी की व्यवस्था करनी पड़ी, इससे न केवल पाठक वर्ग लाभांवित हुआ बल्कि अनेक टैक्सी चालकों को भी रोज़गार मिल गया, सभी वर्गों को लाभ मिला, लेकिन इससे अखबारों पर जो आर्थिक बोझ पड़ा उसकी परवाह 'अमर उजाला' ने नहीं की। कारण स्पष्ट था कि अतुल हिमाचल में पत्रकारिता का परचम लहराना चाहते थे, बहुत से बेरोज़गार युवाओं को रोज़गार दिलाना चाहते थे । इन्हीं प्रयासों के चलते अन्य समाचार पत्रों ने भी कमर कस ली इस स्पर्था में पाठकों को रिझाने के लिए कई योजनाएँ शुरू हुईं, तो कभी अखबारों को अपनी साख बचाए रखने  के  लिए दाम गिराने पड़े, अतुल ने इस स्पर्था का मुँहतोड़ जवाब तो दिया ही, साथ ही साथ पत्रकारिता के मानकों को भी गिरने नहीं दिया। यही नहीं हिमाचल में  'अमर उजाला' ने जब कदम रखे थे तो अखबारों के लिए काम करने वाले संवाददाताओं का शोषण जोर शोर से हो रहा था। यह अतुल की ही टीम थी या फिर अन्य अखबारों के इक्का-दुक्का पत्रकार जिन्हें अच्छा वेतन मिल जाता था। उस समय संवाददाताओं को समाचार पत्रों की ओर से फैक्स अथॉरिटी दिया जाना मात्र ही एक बड़ी उपलब्धि माना जाता था   इस उप्ल्बधि का दंभ मैंने भी काफी समय तक भरा। लेकिन पत्रकारिता एक व्यवसाय भी हो सकती है, इसका आभास हिमाचल में 'अमर उजाला' टीम के सदस्यों को मिल रहे आकर्षक वेतनमान से हुआ  । जहाँ अन्य अखबारों में दो या तीन संवाददाता थे, वहीं 'अमर उजाला' ने मात्र शिमला में ही 25 से भी अधिक पत्रकारों की फौज से हिमाचल में पत्रकारिता का बिगुल फूँका। प्रदेश भर में इसका आकलन करें तो 'अमर उजाला' ने हर ज़िला पर अपना कार्यालय खोला और अनेक संवाददाता भी नियुक्त किये। इसी स्पर्धा में अन्य समाचार पत्रों को भी उतरना पड़ा और संवाददाताओं को आकर्षक वेतन मिलने का दौर शुरू हुआ। इस प्रकार अतुल महेश्वरी ने हिमाचल में आर्थिक शोषण झेल रहे पत्रकारों की आँखों में खुशी की जो चमक लाई, उससे प्रदेश का पत्रकारिता जगत जगमगा उठा।
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                                             आज अनेक समाचार पत्र हिमाचल से प्रकाशित होते हैं और उपमण्डल स्तर तक अखबारों के कार्यालय हैं और संवाददाताओं को वेतन की व्यवस्था भी है। हिमाचल में इस प्रकार की परम्परा एक मायने में 'अमर उजाला' के आने के बाद ही शुरू हुई। यही नही अतुल महेश्वरी को टक्कर देने के लिए अन्य समाचार पत्र भी सतर्क हुए, जिसे इन समाचार पत्रों को भी लाभ पहुँचा। आज की तारीख में अगर देखें तो हिमाचल प्रदेश में लगभग 4 लाख या इससे अधिक विभिन्न समाचार पत्र बिक रहे हैं पत्रिकाओं का आँकड़ा इसके अतिरिक्त है। हिमाचल में पत्रकारिता की उन्नति के तार अतुल महेश्वरी से सीधे-सीधे जुड़े हुए हैं। ऐसे में अतुल के जाने की खबर कितनी दुखदायी साबित हुई है इसका अंदाज़ आसानी से लगाया जा सकता है। 'अमर उजाला' की शुरूआत करने जब एस. राजेन.टोडरिया शिमला आए थे, उस समय से लेकर धर्मशाला में त्रिलोकी नाथ उपाध्याय के साथ मित्रतावश 'अमर उजाला' से जो तार जुड़े रहे ,उससे अतुल जी के दृष्टिकोण और नीति की छवि मेरे मन- मस्तिष्क में घर करने लगी। बहुत से पत्रकारिता के गुर भी सीखे। अतुल के न रहने पर आज अहसास हुआ कि यदि किसी परिवार का मुखिया स्नेह, आत्मीयता और दृष्टिकोण लेकर काम करें तो एक बहुत बड़ा कुनबा खड़ा हो जाता है। गिरीश गुरूरानी जब शिमला में मुझसे 'अमर उजाला' के बारे में बात करते है तो अतुल की झलक उनमें मिलती है, यही झलक मैंने बरसों पहले दिनेश जुयाल और अब अरुण आदित्य में देखी है। पत्रकारिता एक व्यवसाय भी हो सकता है यह हिमाचल में अतुल महेश्वरी की सोच ने साबित कर दिया, यदि ऐसा कहा जाए तो ग़लत न होगा।                       
sub heading 3                                             मेरी अतुल महेश्वरी से वर्ष 2002 में लगभग 15 मिनट की मुलाकात हुई थी, जब मैं पत्रकारिता में संघर्ष की राह पर था। ऐसे में अतुल के साथ काम करने का सपना तो साकार नहीं हुआ, परंतु उनसे जो आत्मीयता और स्नेह मिला वह अविस्वरणीय रहा। लेकिन कहीं न कहीं पत्रकारिता में उनसे मिली प्रेरणा के फलस्वरूप उनसे हुई 15 मिनट की मुलाकात से जो तार जुड़ गए थे उसका अहसास उस समय हुआ जब संभवतय़ः मेरे घर पर चाय पीने आए 'अमर उजाला' के शिमला कार्यालय में कार्यरत मेरे मित्र निक्का राम के मोबाईल पर अचानक अतुल महेश्वरी के निधन का संदेश 'जनसत्ता एक्सप्रैस' की न्यूज़ सर्विस के माध्यम से मिला। इस एस एम एस की पुष्टि जब मेरे प्रिय मित्र और् 'अमर उजाला' के हिमाचल संस्करण के संपादक गिरीश गुरूरानी ने फोन पर की तो मन को गहरा घाव लगा। अतुल के निधन मे मात्र 25 मिनट या इससे भी कम समय की अवधि में जब यह पीड़ादायक सूचना ज़ाहिर तौर पर मुझे हिमाचल में सबसे पहले मिली तो ऐसा प्रतीत हुआ मानों अतुल आखिरी विदा भी बोल-बता कर ले रहे हों।
                                           ज़ाहिर है कि 'अमर उजाला' परिवार सहित पूरे मीडिया जगत को इस घटना से गहरा सदमा लगा है, लेकिन ऐसी विकट परिस्थिति का सामना करते हुए मुझे इस बात की आशा है कि अतुल ने अपनी सोच को अपनी टीम में कूट क़ूट कर भर दिया है, जिसके फलस्वरूप उनके न होने पर भी  'अमर उजाला' के माध्यम से पत्रकारिता की ये लौ जलती रहेगी  लेकिन दुःख है तो बस इस बात का कि अतुल चुपचाप, अचानक चल दिये, उनका न होना पत्रकारिता की अमूल्य क्षति है।  मन बहुत आहत
है।

5 टिप्‍पणियां:

अरुण डोगरा रीतू ने कहा…

बादल भाई आपको क्‍या कहुं............... लेकिन शाबाश भई शाबाश जरूर कहुंगा........खैर आप जहां भी रहें साहित्‍य के साथ साथ अन्‍य विषयों पर भी लिखते रहें तथा हम जैसे जिज्ञासुओं की जिज्ञासा को शांत करते रहें

पत्रकार अतुल महेश्वरी के जाने से वास्‍तव में देश ने एक जुझारु कलम खो दी है जिसकी भरपाई नामुमकिन है उन्‍हें श्रद़धांजलि
आपने जिस तरह से विषय वस्‍तु को प्रस्‍तुत किया है कोई संपादक ही इस तरह से संपादकीय लिख सकता है
बेहतर लेख शैली तथा प्रस्‍तुतिकरण

राज भाटिय़ा ने कहा…

प्रकाश जी हमारी तरफ़ से पत्रकार अतुल महेश्वरी को भाव भीनी श्रद़धांजलि!!!
कृप्या लेख के फ़ंट थोडे छोटे कर ले, पेज से बाहर जा रहे हे, ओर पढने मै कठिनाई आती हे, धन्यवाद

एन. राम ने कहा…

क्या होता है सिर से साया उठ जाना
तेरे जाने के बाद हमने ये जाना।

...कुछ इसी प्रकार से आपने अतुल माहेश्वरी जी के बारे में लिखा है। जो लिखा वह अक्षरश: सच भी है। इसका मुझे हमेशा मलाल रहेगा कि मैं उस महान शख्सीयत से कभी नहीं मिल पाया। लेकिन इस बात पर गौरव भी महसूस करता हूं कि उनके नेतृत्व में काम किया और अपरोक्ष रूप से उनसे बहुच कुछ सीखा भी।
अतुल जी की शख्सीयत उनकी सोच से ही झलकती है। अतुल जी का न रहना हमारे और उनके अन्य चाहने वालों के लिए किसी आघात के कम नहीं था। जैसे ही मुझे और प्रकाश भाई साहब को उनके जाने का पता चला तो ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी ने सांस ही खींच ली हो।
पहाड़ी क्षेत्रों में 'अमर उजाला' नंबर एक पर कायम है। इससे साफ है कि अतुल जी पहाड़ के दर्द और लोगों की समस्याओं से पूरी तरह से रूबरू थे। पहाड़ के लोगों की समस्याओं को उठाने के जज्बे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहां पहले कुछ अखबार जिले या तहसील में ही रिपोर्ट रख कर इतिश्री कर लेते थे उनको अमर उजाला के प्रदेश में आने के बाद छोटे-छोटे सेंटरों तक में प्रतिनिधि रखने पड़े। अमर उजाला को आज स्वस्थ पत्रकारिता के लिए जाना जाता है तो यह सब उन्हीं की मेहनत का प्रतिफल है। हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी प्रदेश में उन्होंने इस पर जोर दिया कि पाठकों तक ताजा से ताजा खबर और बड़ी से लेकर छोटी हर जानकारी पहुंचे। मेहनत को तरजीह, सच-झूठ से दूरी, अपने मूल्यों और सोच पर कड़ा पहरा और निष्पक्षता अमर उजाला की पहचान मानी जाती है, जो उन्हीं की सोच है।
प्रकाश बादल जी, सच कहा आपने, हिमाचल जैसे प्रदेश में पत्रकारिता को पहचान देने का पूरा श्रेय अतुल जी को जाता है। प्रदेश की समस्याओं को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने में उनका अहम योगदान है। जैसा कि आपने लिखा उस महान आत्मा ने पत्रकारों को अलग पहचान दी। जहां कुछ अखबार फुल टाइम पत्रकारों को नाममात्र मानदेय देते थे, उन्होंने जरूरतों के हिसाब से मेहनत का पूरा प्रतिफल देने के लिए ठोस कदम उठाए।
...अतुल जी को हमारा शत-शत नमन। भगवान उनकी आत्मा को अपने चरणों में स्थान और शांति बख्शें।

कुछ लोग ऐसा मुकाम पा जाते हैं,
हर आम-ओ-खास
के दर्द का मरहम बन जाते हैं।

बेनामी ने कहा…

बादल जी ने सच में ही बडा मार्मिक लेख लिखा है हम उनके लिखे लेखों को पढते रहते हैं इस बारे में हमें किसी अभिन्‍न मित्र से पता चला था कि ब्‍लाग पर जाकर पढ लेना बस हमने पढा और लिखने पर मजबूर हो गए
बादल जी आपने साहित्‍य के बारे में भी बहुत सटीक लिखा है

आभार

बलबीर पांडेय
बिलासपुर

शिवा ने कहा…

प्रकाश जी हमारी तरफ़ से पत्रकार अतुल महेश्वरी को भाव भीनी श्रद़धांजलि!!!
कभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग//shiva12877.blogspot.com पर भी अपनी एक नज़र डालें .

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