गुरुवार, 1 सितंबर 2011

ये कैसी घृणा की नदी तेरे मेरे बीच

असिक्नी पत्रिका में प्रकाशित गज़ल भाई मनु, अरुण डोगरा और अर्श भाई के लिए थी, मित्र का कोई और ही अर्थ न निकाल लिया जाए इस लिए सूरत साफ कर दी जाए तो अच्छा।



ये कैसी घृणा की नदी तेरे मेरे बीच,
है एक पुल की कमी तेरे मेरे बीच।


तूने ही पटरियाँ बराबर न की,
थी प्यार की तो रेल चली तेरे मेरे बीच।


न मुझे सोने दिया, खुद भी जग रहा,
कुछ यूँ रातें कटीं तेरे मेरे बीच,


सूरज को कब रोक पाईं सरहदें,
है बराबर सी धूप बँटी तेरे मेरे बीच

19 टिप्‍पणियां:

SAMSKRITI SAROKAAR ने कहा…

बहुत खूब !

इस रचना ने लगभग नौ महीनों का समय ले लिया। जल्दी से इसे पूर्णता प्रदान करें। हमें इंतज़ार है।

वैसे फेसबुक पर आपको दोस्तों की सूची लगभग 1600 हैं, कैसे याद रखते हैं इतनों को। आपकी हार्ड डिस्क का जवाब नहीं।

- नीलम शर्मा 'अंशु'

"अर्श" ने कहा…

देर आयद दुरुस्त आयद ... वेसे काफी देर हो गयी इस बार ..... बे- बहर में आपका कोई सानी नहीं ... इसको जल्द से मुकम्मल का जामा पहना दें ... खुबसूरत रचना के लिए दिल से बधाई....

अर्श

Prakash Badal ने कहा…

डिम्पल जी का आभार, नीलम जी से तो फोन पर लम्बी बात हुई, और अर्श भाई से जबरदस्ती टिप्पणी लिखवाई

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत ही सुंदर कविता जी, धन्यवाद

Prakash Badal ने कहा…

शुक्रिया राज भाई आप हर बार की तरह इस बार भी आए।

Rohit Singh ने कहा…

अरे वाह याद आ गई इस ब्लॉग की। अहोभाग्य हम सब लोगो का कि कोई खोया ब्लॉगर वापस आ गया। गजल अच्छी बन पड़ी है। पर इतने दिन क्या किया इसका लेखा जोखा भी लिखें।

Prakash Badal ने कहा…

रोहित भाई शुक्रिया आपने याद रखा ये ही बहुत है

Rohit Singh ने कहा…

बिरादर इतने दिनों का लेखा जोख तो दें। कहां रहें क्या करते रहे......>

रंजना ने कहा…

वाह...बहुत खूब...बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल...
कितना सही कहा है आपने....

लिखते रहिये...पोस्टों की आवृति बढाइये...शुभकामनाएं..

manu ने कहा…

छप चुकी है...फिर भी अभी तक काम चल रहा है जी...?

ये तो वही ग़ज़ल है जिओ दो साल रात पहले ११ बजे आपने फोन पे सुनाई थी...


इतने अरसे बाद आप ये हमें समर्पित कर रहे हैं...

Prakash Badal ने कहा…

मनु भाई समर्पित इसलिए कि मुझे लिखने पर मज़बूर कर दिया आपने

Puneet Sahalot ने कहा…

bahut dino baad aapke blog par aana hua...
bahut khoob likha hai... is blogging ne hum sbko is tarah jod diya h jaise koi rishta hai tere mere bich :)

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बहुत खूब...
..अच्छा लगा आपको पढ़कर।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

आज आपका जन्म दिन है..ढेर सारी बधाई।

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत ही सुंदर कविता| धन्यवाद|

alka mishra ने कहा…

बेहतर कोशिश

Vivek Jain ने कहा…

nice words you have chosen
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

अनंत आलोक ने कहा…

वाह बदल जी ...अति सुंदर गजल ....ये केसी घृणा की नदी है तेरे मेरे बीच...यूँ तो आप हिमाचल के हर रचनाकार के ब्लॉग पर नजर आते हैं लेकिन आपने जो हिमाचली रचनाकार को नेट से जोड़ने का काम किया है इसके लिए हिमाचली साहित्य जगत आपका आभारी रहेगा | हमें आप पर गर्व है |

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

bahut sundar prakash bhai;.; badhiya gazal... diwali kee hardik shubhkaamna !

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