(मुम्बई में हुए आतंकी हमले से
आहत हूं और ईश्वर से प्रार्थना
करता हूं कि आतंक फैलाने
वाले लोगों को खुदा राह दिखाए)
मत पूछो क्या है हाल शहर में।
ज़िन्दगी हुई है बवाल शहर में।
कुछ लोग तो हैं बिल्कुल लुटे हुए,
कुछ हैं माला-माल शहर में।
झुलसी लाशों की बू हर तरफ,
कौन रखे नाक पर रूमाल शहर में।
चोर,लुटेरे, डाकू और आतंकवादी,
सब नेताओं के दलाल शहर में।
भौंकते इंसानों को देखकर,
की कुत्तों ने हड़ताल शहर में।
मुहब्बत के मकां ढहने लगे,
मज़हब का आया भूंचाल शहर में।
बिना घूंस के मिले नौकरी,
ये उठता ही नहीं सवाल शहर में।
आहत हूं और ईश्वर से प्रार्थना
करता हूं कि आतंक फैलाने
वाले लोगों को खुदा राह दिखाए)
मत पूछो क्या है हाल शहर में।
ज़िन्दगी हुई है बवाल शहर में।
कुछ लोग तो हैं बिल्कुल लुटे हुए,
कुछ हैं माला-माल शहर में।
झुलसी लाशों की बू हर तरफ,
कौन रखे नाक पर रूमाल शहर में।
चोर,लुटेरे, डाकू और आतंकवादी,
सब नेताओं के दलाल शहर में।
भौंकते इंसानों को देखकर,
की कुत्तों ने हड़ताल शहर में।
मुहब्बत के मकां ढहने लगे,
मज़हब का आया भूंचाल शहर में।
बिना घूंस के मिले नौकरी,
ये उठता ही नहीं सवाल शहर में।
13 टिप्पणियां:
कुछ लोग तो हैं बिल्कुल लुटे हुए,
कुछ हैं माला-माल शहर में।
...मित्र अच्छी पंक्तियां हैं, बधाई.
चोर,लुटेरे, डाकू और आतंकवादी,
सब नेताओं के दलाल शहर में।
बहुत ही सुंदर.
धन्यवाद
मुहब्बत के मकां ढहने लगे,
मज़हब का आया भूंचाल शहर में।
बहुत खूब प्रकाश जी...
नीरज
बहोत खूब लिखा है आपने .. ढेरो बधाई आपको...
यकीन करो. आपकी ग़ज़लों के लिए सिर्फ़ एक शब्द होता है मेरे पास: वाह! कमाल का लिखा: बस जारी रहें. शुभकामनाएं.
वाह ! बहुत सही सार्थक और सुंदर पंक्तियाँ हैं.बहुत ही सुंदर ग़ज़ल है.हरेक शेर सुन्दरता से यथार्थ को चित्रित करते हुए.
एकदम सच बयान किया है आपने.आज का यथार्थ यही है.
बहुत सही उकेरा मुम्बई पर हुए हमले की बात को!
aapke blog pe pehli bar aana hua accha likhte hain aap thoda aur nikhar layen ye paktiyan acchi lagin-
जिसमें दिल की धड़कन ही न शामिल हुई,
वो भला क्या हाथों में मेंहदी लगाना हुआ।
Prakaashji
अपने स्वार्थ के लिए, राक्षशो को सेंच डाले,
बहनों की इज्ज़त्त, माँ की अस्मिता बेच डाले
दस-बीस नही, लाखो घूम रहे है कंगाल शहर में
प्रकाश जी आपने मुंबई के हालातों पर जो गजल लिखी है वह बहुत ही माकूल और सच के एकदम करीब है. मैं मुंबई में ही रहता हूँ और आपकी इस गज़ल में बहुत ही सजीव चित्रण किया है.
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद......
bahut sundar rachna. maine aaj hi padhi,kafi achhi lagi.
यह रचना सच्चाई के करीब है । तरकश उनका तीरों से हो गया ख़ाली मगर,
मेरे हौसले ने अभी भी है सीना ताना हुआ। आपके होसलो को मेरा सलाम ।
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