सोमवार, 10 नवंबर 2008

जब से तेरे प्यार में.......


जब से तेरे प्यार में पागल रहा हूं मैं।
शहर भर की तबसे हलचल रहा हूं मैं।

मेरी भाषा अब ये समंदर क्या जाने,
कि नदी में बहती हुई कल-कल रहा हूं मैं,

बर्फ हूं मेरे नाम से ठिठुरते हैं सभी,
पहाडों पर लेकिन बिछा कंबल रहा हूं मैं।

आग आरियां,तूफान, बारिश, साजिशें बौनी हुई,
लहलहाता हुआ मगर जंगल रहा हूं मैं।

होकर माला-माल शून्य कई लौट गए,
भूल गये कि उनका एक हासिल रहा हूं मैं।
डाकू तो रह रहे सब संसद की शरण में,
बस नाका ही अब चंबल रहा हूं मैं।

25 टिप्‍पणियां:

manvinder bhimber ने कहा…

आग आरियां,तूफान, बारिश, साजिशें सब बौनी हुई,
लहलहाता हुआ मगर जंगल रहा हूं मैं।
bahut khoobsurat

Prakash Badal ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
समय चक्र ने कहा…

bahut badhiya gajal. badhai.

Prakash Badal ने कहा…

मंविन्दर जी,
धन्यवाद प्रोत्साहन के लिये। आपकी टिप्पणी मेरे लेखन को एक बेशकीमती पुरस्कार है।

Prakash Badal ने कहा…

भाई मिश्रा जी,
प्रोत्साहन के लिये आपका आभार, आशा है स्नेह बना रहेगा।

"अर्श" ने कहा…

डाकू तो रह रहे सब संसद की शरण में,
बस नाम का ही अब चंबल रहा हूं मैं।

bhai bahot khub likha hai aapne,aapki gahari thinking aapko mukkamal shayar bana degi ... bahot umda .... jari rahe .. dhero sadhuwad...

पुनीत ओमर ने कहा…

बढ़िया गजल

Prakash Badal ने कहा…

अर्ष भाई,

जिस स्नेहिल भाव से आपने मेरी ग़ज़ल को सराहा है, उससे मुझे कितनी खुशी महसूस हो रही है, उसका आप अनुमान नहीं लगा सकते, स्नेह के लिये शुक्रिया।

Prakash Badal ने कहा…

पुनीत भाई,

धन्यवाद आपकी शुभकामनाओं से और लिखने की प्रेरणा मिलती है।

अमिताभ मीत ने कहा…

डाकू तो रह रहे सब संसद की शरण में,
बस नाम का ही अब चंबल रहा हूं मैं।
acchha hai bhai.

ghughutibasuti ने कहा…

बढ़िया !
घुघूती बासूती

Prakash Badal ने कहा…

मेरे बडे भाई मेरे मीत,

आपकी प्रशंसा से मुझे बेहद खुशी हुई है। आपका स्नेह बना रहे तो लिखने में और धार आएगी।

रंजना ने कहा…

डाकू तो रह रहे सब संसद की शरण में,
बस नाम का ही अब चंबल रहा हूं मैं।
एकदम सही कहा.


बहुत ही सुंदर रचना है.ऐसे ही लिखते रहें.शुभकामनाएं.

रंजना ने कहा…

बर्फ हूं मेरे नाम से ठिठुरते हैं सभी,
पहाडों पर लेकिन बिछा कंबल रहा हूं मैं।

यह शेर गजब की सुन्दरता लिए हुए है.

Prakash Badal ने कहा…

रंजना जी,
धन्यवाद जिस गहराई से आप ने मेरी गज़ल पर टिप्पणी की है उससे आपकी साहित्य के प्रति रुचि स्पषट झलकती है, आशा है कि भविष्य में भी आपका स्नेह बना रहेगा।

Jeevan Jyoti ने कहा…

very good
ajay

Prakash Badal ने कहा…

Thanks Ajai Ji, I am very happy for your interest in my writing.THanks a lot.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा, प्रकाश जी. आनन्द आया पढ़कर.

Prakash Badal ने कहा…

शुक्रिया भाई समीर जी स्नेह और मार्गदर्शन बना रहे।

prakashbadal.blogspot.com

अनुपम अग्रवाल ने कहा…

आग आरियां,तूफान, बारिश, साजिशें सब बौनी हुई,
लहलहाता हुआ मगर जंगल रहा हूं मैं।
डाकू तो रह रहे सब संसद की शरण में,
बस नाम का ही अब चंबल रहा हूं मैं।
वाह प्रकाश जी आपने जंगल में प्रकाश फैला दिया
क्या झकझोरता हुआ व्यंग्य है

Prakash Badal ने कहा…

शुक्रिया अग्रवाल जी,

मेरी लेखनी को और ताकत मिली।

डा गिरिराजशरण अग्रवाल ने कहा…

जबसे तेरे प्यार में पागल रहा हूं मैं।
शह्र-भर की तबसे ही हलचल रहा हूं मैं।
संभवतया पागलपन ही प्यार की पहली निशानी है। प्यार करो अपने समय से, अपने चारों ओर के वातावरण से, जीव-जंतुओं से और फिर अपने आप से। डा गिरिराजशरण अग्रवाल

Prakash Badal ने कहा…

शुक्रिया डॉ0 साहब,

टिप्पणी के लिये।

बेनामी ने कहा…

वाह प्रकाश जी क्या लिखा है।

मनीष कुमार,ठियोग्

Anuja ने कहा…

Gareebon ka hi ab chambal raha hun men.
All the best.

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