गुरुवार, 23 अक्तूबर 2008

शिवालों मस्जिदों को छोड़ता क्यों नहीं।

शिवालों मस्जिदों को छोड़ता क्यों नहीं।
खुदा है तो रगों में दौड़ता क्यों नहीं।

लहूलुहान हुए हैं लोग तेरी खातिर,
खामोशी के आलम को तोड़ता क्यों नहीं।

कहदे की नहीं है तू गहनोंन से सजा पत्थर,
आदमी की ज़हन को झंझोड़ता क्यों नहीं,

पेटुओं के बीच कोई भूखा क्यों रहे,
अन्याय की कलाई मरोड़ता क्यों नहीं।

झुग्गियां ही क्यों महल क्यों नहीं,
बाढ़ के रुख को मोड़ता क्यों नहीं।

18 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

वाह प्रकाश जी ! क्या खूब लिखा है

शिवालों मस्जिदों को छोड़ता क्यों नहीं।
खुदा है तो रगों में दौड़ता क्यों नहीं।

पेटुओं के बीच कोई भूखा क्यों रहे,
अन्याय की कलाई मरोड़ता क्यों नहीं।

मन को झकझोरने वाली पंक्तियाँ हैं

शोभा ने कहा…

आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ ह

dinesh kandpal ने कहा…

बहुत बहुत स्वागत है आपका.. अच्छा लिखते हैं आप..जारी रखियेगा ज़रूर...दिनेश

संगीता पुरी ने कहा…

नए चिट्ठे के साथ हिन्दी चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है... आशा है आप अपनी प्रतिभा से चिट्ठा जगत को समृद्ध करेंगे.... हमारी शुभकामनाएं भी आपके साथ है।

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

balak bola dekh kar masjid aalishan , ek kudha ke liye itna bada makan

Amit K Sagar ने कहा…

मेरे भाई, बेशक बहुत ही उम्दा लिखते हैं आप. और मीटर की येसी-की-तैसी में रखो. और अगर कुछ कर गुज़रना है इसके जरिये और सफलता न मिले, मुझे लिखना. वाकई कलम में दम है. जारी रहें.
शुभ्कामंयों सहित;
---

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

लहूलुहान हुए हैं लोग तेरी खातिर,
खामोशी के आलम को तोड़ता क्यों नहीं।
laazabaab

Prakash Badal ने कहा…

मनोरिया साहब,
आपको मेरी रचन अच्छी लगी, लिखना सार्थक हुआ। प्रोत्साहन के लिये धन्यवाद। सनेह जारी रखें।

Pawan Upreti, Journalist ने कहा…

Good eve sir, I want say thanks 2 u that u appreciate 2 me And I want say sorry that I did not reply u since u send me ur scrap I m new bloger so Ido not knoe How 2 write in hindi , Plz help me Belated Happy Diwali.
I really appreciate 2 ur all Gajals In Hindi if I sya It is jabardast U leave nothing in ur gajal . It is real and compell 2 think about the human nature .
Thanks a lot plz reply

Prakash Badal ने कहा…

प्रिय पवन भाई,

मुझे आपकी टिप्पणी पढ कर बेहद खुशी हुई. हिन्दी में टाईप करना बहुत ही आसान है। अगर आप का कोई email का पता है तो मुझे देना और आप चैट पर मेरे साथ आन तो कुछ ही समय में आप को सब बता दूंगा। मुझे भी ये दिल्ली में ही रह रहे भाई शैलेश भारतवासी ने सिखाया है, वो हिन्दी लेखकों की बढी सेवा व सहयोग करते हैं भविष्य में भी मेरी रचनाओं पर अपनी टिप्पणी देते रहें।

रचना गौड़ ’भारती’ ने कहा…

कहदे की नहीं है तू गहनोंन से सजा पत्थर,
आदमी की ज़हन को झंझोड़ता क्यों नहीं,
bahut sundar rachanaa

Prakash Badal ने कहा…

रचना जी,

आपका धन्यवाद। मुझे आपकी प्रतिक्रिया से और अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलेगी, भविष्य में भी आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

रंजना ने कहा…

कभी कभी लगता है कि,दुनिया में इतना कुछ ग़लत हो रहा है पर भगवान् चुप क्यों बैठा है?? बड़ा ही स्वाभाविक प्रश्न है,कि जिसके इशारों के बिना पत्ता भी नही हिलता,तो यह ग़लत भी उसीका इशारा तो नही????? पर ऐसा है कि ईश्वर ने और जीवों के अपेक्षा मनुष्य को अपरिमित सामर्थ्य दिया और उसी मनुष्य के ह्रदय में विवेक रूप में अवस्थित हो कर्म करने की पूरी छूट दी.अब तो यह मनुष्य पर निर्भर करता है कि वह उस ईश्वर(विवेक) की सुनते हुए सत्कर्म करता है या अपने सामर्थ्य को विध्वंश में लगता है.......... ईश्वर उसीकी हाथ पकड़ ग़लत करने से रोकता है जो अपने कर्मो को ईश्वर की साक्षी मानकर करता है और उस परमात्मा से सद्बुद्धि की अपेक्षा रखता है..........

Prakash Badal ने कहा…

रंजना जी प्रतिक्रिया के लिये शुक्रिया

chandrabhan bhardwaj ने कहा…

Bhai Prakash Badal ji Aapne apni tippadi men lkha hai ki log aalochana karate hein ki aapki gazalen meeter men nahin hain aur aap meeter ko koi mahatwa nahi dete. aapka yah sochana bilkul galat hai gazal men meeter ka wahi mahatwa hai jaise dil ke liye dhadakna. Agar gazal bahar men nahin hai to wah moolyaheen hai. AAp is or vishesh dhyan den.Bina shilp ke kathya bejaan ho jata hai. use unjaan hi sarah sakta hai jaankar nahi.

Chandrabhan Bhardwaj

Prakash Badal ने कहा…

आदरणीय चंद्रभान जी,
आपका धन्यवाद, प्रयास रहेगा कि और बेहतर लिखूं।

Shabd Sansad ने कहा…

तुम्हारा कमेंट सुखद आश्चर्य की तरह आया। जब्द मुलाकात होगी। फर्क बस माध्यम का होगा।

Rajeev Bharol ने कहा…

वाह,
बहुत अच्छी गज़ल.
मतला और आखिरी शेर तो गज़ब हैं.

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